रीता ने जो सीखा

एक दशक के संस्मरण, 1975–1985

Author by : Brinda Karat

Translated by : Sonali

9789392017872

2024

Language: Hindi

206 Pages

5.5 x 8.5 Inches

In Stock!

Price INR 295.0 Price USD 16.0

About the Book

अगस्त 1975, आपातकाल लागू हुए बस दो महीने बीते थे। एक रात उत्तरी दिल्ली के कमला नगर में एक छोटे से कमरे में कुछ कम्युनिस्ट जमा हुए। वे लालटेन कंपकंपाती रोशनी में फ़र्श पर बैठे थे। उनमें से तेरह पुरुष थे, जो बिड़ला कॉटन टेक्सटाइल मिल के मज़दूर थे और केवल एक महिला थी। उसने भारत आकर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने के लिए लंदन में एयरलाइन की अपनी नौकरी और ड्रामा स्कूल में पढ़ने का सपना छोड़ दिया था। गिरफ़्तारी की आशंका को देखते हुए उसे अपना नाम बदलने के लिए कहा गया। इस तरह बृन्दा का नाम रीता हो गया। एक दशक तक उसने यह नाम अपनाए रखा।


रीता ने जो सीखा हमें दिल्ली के उस इलाक़े में ले जाती है, जिनसे प्रायः हम अनजान रहे हैं। यह अनेक शानदार चरित्रों को सामने लाती है, साथ ही एक ख़ास दौर की उथल-पुथल और अहम घटनाओं के बारे में विस्तार से बताती है, जैसे-आपातकाल के दौरान कपड़ा मज़दूरों की हड़ताल से लेकर ग़रीबों के विस्थापन तक। 1980 की शुरुआत में चलाए गए दहेज विरोधी अभियान से लेकर 1984 के भयावह सिख विरोधी हिंसा तक।


यह एक व्यक्ति के भीतर के असाधारण बदलाव की कहानी है, ज़िद और साहस की भी। यह वर्ग और पारिवरिक पृष्ठभूमि की सीमाओं को तोड़कर जीवन भर के लिए भाईचारे और बहनापे के एक अनूठे रिश्ते में बंध जाने की भी कहानी है। लेकिन इन सबसे बढ़कर यह अभिजात परिवार की एक ऐसी युवती की कहानी है, जो अपने पारंपरिक दायरे से बाहर निकलकर दिल्ली की बस्तियों, औद्योगिक इलाक़ों और शहरी मज़दूर वर्ग की कठोर ज़िंदगी से जुड़ती चली गई और एक बेहतर दुनिया के लक्ष्य को लेकर संघर्ष के लिए उन्हें संगठित करना सीखा।

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